Monday, February 11, 2019

"चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं!"

चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं!
कुछ बातें हो कहनी, जो हो जरुरी,
वो लबों से नहीं, हम धड़कनों से कहते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

बहुत हुआ अब ये अल्फाजों का खेल,
ना करा पाया कोई इनका मेल!
सांसों से, चलों जज़्बातों को समझते हैं,
बिना कुछ कहे, बेवजह बहकते हैं!
करीब होकर भी हम,
चलों मिलने को तड़पते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

जमकर इक-दूजे पे सावन सा बरसते हैं,
हाल-ए-दिल चुपके-चुपके सब कुछ बयां करते हैं!
कुछ हिम्मत दो तुम, कुछ हम डरते हैं,
थोड़े बिगड़ो तुम, थोड़ा हम संवरते हैं!
इश्क की हदें सारी आज पार करते हैं,
डर नहीं अब ज़ालिम जमाने का,
इज़हार-ए-इश्क सरे-आम करते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

चलों रख दें दिल-ए-किताब खोलकर,
कि इश्क की कहानी अश्कों से लिखते हैं!
नज़रों से इसे कहां पढ़ पाया हैं कोई,
इश्क-ए-अल्फाज अहसासों से पढ़ते हैं!
इश्क-ए-दरियां हैं जनाब आग का,
इससे तो खुदा भी तड़पते हैं!
फिर भी तुम हम पे मरते हो,
हम तुम पे मरते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

"Special 26 of 12th in 2016-17"

वो school का ज़माना था,
थोड़ा पागल था, दीवाना था!
Special 26 का वो beach,
गाता-मुस्कुराता, खुशियां मनाता हर-एक!
याद आती हैं, वो पागलपंती,
लीलाधर-मनमोहन की वो mind सनकी,
जिनकी बातें सुन, ना रुकती थी, किसी की हंसी!
उस पर निखिल-चंद्रहास का तड़का,
तभी चलता खुशियों का चरखा!
साथ में वो three idiots...
रहते थे हमेशा वो serious,
दुर्गेश-पोषण और नीरज!
अनिल-अजय और सुमन,
सबसे अलग थे ये तीन जन!
कुछ समझदार थोड़े नादान,
हर-पल रहते तीनों संग!
राजेश्वरी-सरिता, मंजूषा-योजिता,
चारों के चारों अचार संहिता!
सुनते अपनी, करते मन की,
सामने उनकी किसी की ना चलती!
शांत स्वभाव की वो तीन राजकुमारी
सुन्दर-सुशील, सबकी दुलारी!
मुस्कान उनकी प्यारी-प्यारी,
एक के रहता हमेशा नाक पे गुस्सा,
थी वो! प्रभा, श्वेता और रेणुका!
तीनों की थी जिगरी यारी, थी तीनों की एक सवारी!
एक से बढ़कर एक सयानी, भागने में थी वो माहिर,
कल्पना-निशा और देवकुमारी!
हैं तीनों बहनें वो सुन्दर,
कुछ उनका, कुछ मेरा हक हैं उन पर!
साथ मैं उनके शरारत करता,
कुछ भी बातें उनसे छुपा ना पाता!
बहनें थी वो दोस्त सा, मेरी प्यारी
चेतना, सावित्री और मनिषा!
अब बारी उनकी हैं आती, जिनसे हैं बचपन की यारी!
बिन बोले वो सब कुछ समझती!
कुछ मेरी सुनते, कुछ अपनी सुनाती!
नादान थे, परेशान वो रहते, कम कहते पर सच्ची कहते!
पढ़ते वो, जब fell होने का डर रहता,
पास होकर भी अब दूर हैं,
वो मेरी दोस्त! उर्मिला और वर्षा...
मैं भी था इनमें से एक, जो अलग ही राहें चल पड़ा,
गिरा, संभला फिर उठ हुआ खड़ा...
जी करता हैं कि इन यादों में कहीं खो जाऊं,
तांह उम्र के लिए...
कि अब वापस लौटने का दिल नहीं करता!

Sunday, February 10, 2019

"मोहब्बत में लिपटकर प्यारा बसंत आया हैं!"

इश्क करने देखो दीवानों के संग आया हैं,
मोहब्बत में लिपटकर प्यारा बसंत आया हैं!
करने इज़हार-ए-इश्क अपनी,
साथ बहारों के वफ़ा का रंग लाया हैं!
प्रेम से प्रेमियों को मिलाने, प्रेम की परिभाषा
बताने, प्रेम का वो मेला लगाया हैं!
चारों तरफ दीवानों का उमंग छाया हैं,
मोहब्बत में लिपटकर प्यारा बसंत आया हैं!
ठुकरा के सारा जहां उसने इश्क अपनाया है,
बन राधा-मीरा उसने कृष्ण का भंग खाया हैं!
मिला के सब के इश्क को इश्क से,
उसने दीवानों से प्यार अनंत पाया हैं!
इश्क के आसमां पे इसने,
आशिकी के परिंदे सतरंग उड़ाया हैं!
इश्क करने देखो दीवानों के संग आया हैं,
मोहब्बत में लिपटकर प्यारा बसंत आया हैं!

Friday, January 25, 2019

मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

इक लहर खुशी की, उत्साह उमंग का,
रग-रग में बहता स्वाभिमान का तरंग हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

मैं ताकत हूं जन-जन का, मैं साहस हूं वतन का,
तानाशाहों, राजनेताओं, के लिए मैं आतंक हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

जो ना झुका हैं कहीं, ना झुकेगा कभी,
उड़ता परिंदा मैं नभ में, मैं मगन हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

जो मैं कहूं, वो कर डालूं,
रोक ना सका हैं कोई, जो फैसला मैं कर डालूं!
नहीं कोई मेरे जैसा, देश का मैं दबंग हूं,
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

जो छूती हैं ऊंचाइयों को, बंधकर प्रेम के मांझे से,
जो लड़ता हैं हर-पल, भ्रष्टाचारों के प्रहारों से!
नभ में उड़ता वो पतंग हूं,
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

राजा के यलगार के आगे, प्रजा का मैं दहाड़ हूं,
खड़ा हैं अचल, होकर निर्भय, वो हिमालय का पहाड़ हूं!
हर बार जीतेंगी प्रजा ही मेरी,
वो राजा-प्रजा का द्वंद हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

Thursday, January 24, 2019

ऐ मेरी भारत की बहनों, मन को ना तुम हताश करों!

अश्कों को अंगार बना के,
दर्दो को श्रृंगार बना के!
लबों पे हर-पल मुस्कान सजा के,
तुम एक नई हुंकार भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

ये जहां नहीं किसी का,
अपनों को अपना तुम ना मानो!
खुद से, खुद में तुम, हो गुम कहीं,
अब खुद से, खुद को, तुम पहचानों!
ना रहेंगे अधूरे, अब ख्वाब तुम्हरे,
तोड़ के सारी जंजीरों को,
तुम एक नई उड़ान भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

झुक जाएं नजरें भी शर्म से, उन मनचलों का,
कांप उठें रुह-तलक भी, उन जालिमों का!
खुदा भी रहें-ना-रहें संग तो क्या?
हौसले की तुम तलवार बनों!
उठें जो गर्व से सर सबका,
तुम देश का ऐसा स्वाभिमान बनों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

मिला के जहां के कदमों से कदम,
तुम भी, दुश्मनों पर पलटवार करों!
हो जो, लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी सी तुम,
अब काली, दुर्गा, चण्डी का तुम अवतार बनों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

हैं वजूद तुमसे ही इस जहां का,
जैसी तुम हो वसुंधरा!
इस बात से तुम ना अब इंकार करों!
हैं ये ज़ालिम ज़माना, कुरीतियों का ठिकाना,
अब तुम भी आगाज़ सरे-आम करों!
तोड़ के सारी जंजीरों को,
तुम एक नई उड़ान भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

पलट के पन्नों को, तुम इतिहास दोहराओं,
रानी लक्ष्मी सी तुम ललकारों!
बन बेटी, गीता-बबीता,
बहन कल्पना सी पहचान बनाओं!
बनकर मां मैरी कॉम,
किरण बेदी सी तुम न्याय दिलाओं!
हैं ज़मीर तुम्हारा भी,
स्वाभिमान भी है, भीतर तुम्हारे,
तो फिर लबों को, ऐसे तुम ना मौन करों,
तोड़ के सारी जंजीरों को,
तुम एक नई उड़ान भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

Thursday, January 17, 2019

'चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!'

बेवजह ही नजरें वो चुराने लगे हैं,
इश्क हमारी वो आजमाने लगे हैं!
कुछ समझ ही ना पाया मैं दोस्तों,
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

ना कोई खता हैं मेरी, ना वो जुदा हैं मुझसे,
जाने किस बात पे वो खफ़ा हैं मुझसे!
पल-पल वो मुझे सताने लगे हैं,
वो ना इश्क हैं मेरा, वो जताने लगे हैं!
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

फ़ुर्सत ही फुर्सत हैं उन्हें मुझसे बात करने की,
फिर भी बहाने हजार वो बनाने लगे हैं!
तोड़ कर नादां दिल ये मेरा गैरों सा,
औरों से भी इश्क वो फरमाने चलें हैं!
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

बेवजह नहीं उनका यूं मुझसे अलग होना,
कुछ तो वजह हैं जो, वो बताना नहीं चाहते!
धीरे-धीरे से मुझसे दूर वो जाने लगे हैं,
हो रही हैं वो किसी और की,ये किसी और से हमें
वो बताने लगे हैं!
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

हमें भुलाना उनकी बस की बात नहीं,
फिर भी वो हमें भुलाने लगे हैं!
तोड़ कर वो अपने हजारों ख्वाब,
खुद को देखों वो संवारने लगे हैं!

अब भी अटकी हुई हैं उनकी सांसें,
थमी हुई हैं दिल की धड़कनें हम पर ही,
लबों की झुठी मुस्कां से अब ये, वो छुपाने लगे हैं!
कदमों को चुम रहीं हैं लाख खुशियां उनकी,
फिर भी झुकी पलकों से वो अश्क बहाने लगे...

याद हमको कर!
शायद वो अब पछताने लगे...

Wednesday, January 16, 2019

"टुटे मेरे इस दिल का, ऐ ज़ालिम तूं दाम ना लगा!"

टुटें मेरे इस दिल का, ऐ ज़ालिम तूं दाम ना लगा!
तूं इश्क हैं मेरा! बेवजह ये इल्ज़ाम ना लगा...

तारीफें तो तेरी खुदा तक करते हैं, ऐ गुस्ताख़ इश्क!
वफ़ा को तेरी बदलने में सुबह से शाम ना लगा...

अब ना कोई राहें हैं मेरी, ना पता हैं कोई मंज़िल का!
ये तो नशा हैं तेरी मदमस्त निगाहों का, ना कोई जाम लगा...

वो इश्क हैं मेरा! ना कर सकेगा जुदा
ऐ कायनात! चाहे तूं जोर अपनी तमाम लगा...

हम तो परिंदे हैं, आसमां-ए-इश्क के!
हमें जंज़ीर-ए-मज़हबों से तूं लगाम ना लगा...

पाक सा पवित्र हैं, ये इश्क खुदा का!
नापाक-नियतों से तूं अपनी, जिस्मों का नीलाम ना लगा...

Friday, January 11, 2019

"यारों बढ़ते चलों ये ज़िन्दगी हैं कि रुकती नहीं..."

यारों बढ़ते चलों ये जिंदगी हैं कि रुकती नहीं...
बदलना हर-पल, ये दुनियां की रीत यहीं...

कुछ कर दिखाना हैं, हमें मंज़िल पाना हैं,
क्यों डरते हो? ये अपना ज़माना हैं!
चल के देखो तो, अपनी मंज़िल वो रहीं...
यारों बढ़ते चलों ये जिंदगी हैं कि रुकती नहीं...
बदलना हर-पल, ये दुनियां की रीत यहीं...

मुश्किल ये राहें, हमने भी अपनाएं,
थमेंगे ना कदम, अब कुछ भी हो चाहे!
हैं हौसला दिल में, तो हैं अपना ये जहां,
बेबसों की ये दुनियां नहीं...
यारों बढ़ते चलों ये जिंदगी हैं कि रुकती नहीं...
बदलना हर-पल, ये दुनियां की रीत यहीं...

क्यों मायूस बैठे हो? ज़रा हंस के देखो तो,
हौसला रखो, क्यों उम्मीद खोते हो!
माना हैं मुश्किल, पाना ये मंज़िल,
जो हार जाएं खुद से, वो हम नहीं...
यारों बढ़ते चलों ये जिंदगी हैं कि रुकती नहीं...
बदलना हर-पल, ये दुनियां की रीत यहीं...

अपना हैं ये लम्हा...
अब बदलेंगे ये दुनियां!
जैसा चाहे, इसको हम बनायें,
अपना हैं ये आसमां, हैं अपनी ये ज़मीं...
यारों बढ़ते चलों ये जिंदगी हैं कि रुकती नहीं...
बदलना हर-पल, ये दुनियां की रीत यहीं...

Wednesday, January 9, 2019

"जीने के लिए मरने चला हूं..."

हवा का रुख! देखो बदलने चला हूं,
ज़माने से अकेले लड़ने चला हूं!
मिले-ना-मिले मंज़िल तो क्या?
सफ़र में आखिर तक चलने चला हूं!

होगा खुदा भी हैरान मेरे हौसले से,
बिन पंख मैं आसमां छूने चला हूं!
कण-कण सा था मैं गुम कहीं...
बन खूशबू जहां में महकने चला हूं!

थी अमावस तन्हा-ए-रात जिंदगी,
चांद-चांदनी सी बिखरने चला हूं!
बन गोला सूर्य सा! रौशन करने जहां को,
हर-एक के सिने में धधकने चला हूं!

ना चाह हैं पहचान की, ना मान की, सम्मान की,
खुद को कर समर्पित! एक इंसान बनने चला हूं!
बदलना नहीं इतिहास मुझे! बदल किस्मत अपनी
इक नया इतिहास रचने चला हूं!

हमने भी देखें कई पड़ाव जिंदगी के,
हर-एक से कुछ ना कुछ सिखने चला हूं!
और क्या कहूं दोस्तों?
जीने के लिए मरने चला हूं...

Tuesday, January 8, 2019

तेरे इश्क में खुद को मिटा दिया हैं!

रों-रों अश्क बहाऊं तेरी यादों में,
करवटें बदल-बदल कर जागूं रातों में!
तूं इश्क हैं मेरा! ये ज़िद हैं मेरी,
पत्थर की लकीर सी, समंदर सी गहराई हैं मेरी बातों में!

तूं समझ ना समझ कोई बात नहीं,
टूट कर बिखर जाऊं! ऐसे भी हालात नहीं!
जो गुज़रा ना हो, ढला ना हो, वक्त के साथ,
ऐसी भी कोई अंधेरी रात नहीं!

तेरे ना होने से कोई फर्क ना पड़ा,
बस! जीने का तरीका बदल गया हैं!
सह के तकलीफें हजार, दिल-ए-नादान
देखो फिर से संभल गया हैं!

करता हूं दुआं हजार हर-रोज तेरे लिए,
करता हूं इंतज़ार हर-रोज तेरे लिए!
ना बदला था और ना ही बदलेगा कभी,
हैं जो ये इश्क वाला प्यार हर-रोज तेरे लिए!

तेरे इश्क में खुद को मिटा दिया हैं,
इश्क क्या हैं? जमाने को बता दिया हैं!
तूं परवाह ना कर मेरी...
हमने तो खुद से खुद को इश्क का सज़ा दिया हैं!

Sunday, January 6, 2019

"शायर हैं जनाब! हर किरदार निभाते हैं..."

कायनात के हर ज़र्रे को पहचानते हैं,
शायर हैं जनाब! हर किरदार निभाते हैं...

आशिकी में हर हदें पार कर जाते हैं,
जब आशिक बन जाते हैं!
अपनी राहें खुद बनाते हैं,
जब मुसाफिर बन जाते हैं!
मंज़िल तो हैं ही अपनी, हम तो वो हैं
जो सफ़र में इश्क फरमाते हैं!
शायर हैं जनाब! हर किरदार निभाते हैं...

कभी बनके पिता, उनकी करूणा को बताते हैं,
तो कभी मां बन, ममता को दर्शातें हैं!
बन खुदा! हर दुआ कुबूल करातें हैं,
शायर हैं जनाब! हर किरदार निभाते हैं...

दोस्ती ऐसी कि, दुश्मनों से भी यारी निभाते हैं,
चांद भी शरमां जाएं, ऐसी खूबसूरती दिखाते हैं!
बनके बादल मस्त घटा ज़मीं की प्यास बुझाते हैं,
तो कभी बन धरा हम सावन का इंतजार कराते हैं!
शायर हैं जनाब! हर किरदार निभाते हैं...

बनके अलंकार, नारी का रूप श्रृंगारते हैं,
तो कभी बन ज्वाला, आदि-शक्ति को जगाते हैं!
बन दुर्योधन भी बुराइयों को उभारते हैं,
तो कभी अर्जुन को कृष्ण सा राह दिखाते हैं!

शायर हैं जनाब! हर किरदार निभाते हैं...

Friday, January 4, 2019

कोशिश एक और बार करों!

हारो ना जिंदगी से कभी,
उठो चलों पलटवार करों!
मिलीं असफलता तो क्या?
कोशिश एक और बार करों!

होगी दुनियां भी दिवानी इक दिन तुम्हारी,
कर प्रतिज्ञा खुद से, एक नई हुंकार भरों!
कर एकत्रित सर्वबल अपनी,
साधो निशाना मंज़िल पे, और प्रहार करों!

माना कठिन हैं राहें तुम्हारी,
पल भर ना अब तुम! बेकार करों!
ये वक्त ना रुकेगा क्षण भर भी,
खुद को खुद से तैयार करों,

राहें हमारी, हमें ही चलना हैं,
बहाने ना तुम हजार करों!
दूर नहीं हैं ये मंज़िल हमारी,
तुम चलना तो शुरुआत करों!

हैं निराशा की ये रात घनी,
मन को ना तुम हताश करों!
करके खुद में सुधार,
उम्मीद-ए-रौशन की तलवार बनों!

इक दिन होगा वक्त भी गुलाम तुम्हारा,
एक बार ज़मीं को आसमान तो करों,
लिखनी हैं खुद से तक़दीर अपनी,
खुद में हीरें सा निखार करों!

'उसे तूं कभी भूला न सकेगा!'

उनका ख्वाब न देख ऐ 'कांत'
उन्हें तूं कभी पा न सकेगा!
ज़ख्म मिला हैं सिने में ऐसा,
जिसे तूं कभी मिटा ना सकेगा!

जो हुआ उसका शोक मत कर 'कांत'
ऐसे में तूं कभी, खुशी पा ना सकेगा!
हौसले से जला तूं उम्मीद का दीया,
जिसे कभी कोई बुझा ना सकेगा!

जिन्दगी में हर पल मुस्कुराओं,
करों यकीं! तुम्हें कोई रूला ना सकेगा!
चलते रहों वक्त के साथ,
कोई तुम्हें इंतजार करा ना सकेगा!

मोहब्बत की हैं तो इज़हार करना,
इंकार के डर से, उसे तूं छुपा ना सकेगा!
गया वो लम्हा जो एक बार, कर लें
लाख कोशिश, उसे तूं कभी ला न सकेगा!

हैं राज़ जो दिल में, उसे छुपाएं रखना,
औरों को इसे तूं बता ना सकेगा!
वो दिल में हैं, दिमाग में नहीं,
उसे तूं कभी भूला ना सकेगा!

Thursday, January 3, 2019

"राष्ट्रीय सेवा योजना!" (NSS)

ये  NSS हैं जनाब!
यहां! मैं नहीं, तुम! कहलाते हैं...

हर एक को, धुल से उठाकर,
सजदें पे बिठाते हैं!
यहां खुद की खुद से पहचान कराते हैं!
ये  NSS हैं जनाब!
यहां! मैं नहीं, तुम! कहलाते हैं...

काले कच्चे  कोयले को भी हीरा बनाते हैं,
नापाक किचडो़ में इंसानियत की,
कमल खिलाते हैं!
समानता, समर्पण, सेवा से,
विश्व को नई राह दिखाते हैं!
ये  NSS हैं जनाब!
यहां! मैं नहीं, तुम! कहलाते हैं... 

आतंको की रात में, दंगों के सैलाब में,
एकता की, ज्वाला सा दीप जलाते हैं!
कर स्वच्छता से मन निर्मल,
बंजर भूमि को भी बाग बनाते हैं!
ये  NSS हैं जनाब!
यहां! मैं नहीं, तुम! कहलाते हैं... 

छोड़ नशा जीवन को सफल बनाना,
कर सुरक्षा बेटी की आगे उसको
खूब पढ़ाना!
छोड़ के कुरीति, अंधविश्वासों को,
सब में सबका भगवान दिखाते हैं!
ये  NSS हैं जनाब!
यहां! मैं नहीं, तुम! कहलाते हैं... 

युवा हैं हम! विश्व में देश की
अलग ही पहचान बनाते हैं!
शांति, संयम, शौर्य, सक्रियता,
सत्य, अहिंसा और मानवता की,
इक नई मिसाल बनाते हैं!
ये  NSS हैं जनाब!
यहां! मैं नहीं, तुम! कहलाते हैं... 

Wednesday, January 2, 2019

आख़िरी सांस तक तेरा इंतज़ार तो कर लूं...

एक बार तुम्हें सिने से लगाना चाहता हूं,
कितना दर्द हैं दिल में, तुम्हें बताना चाहता हूं!
कैसे गुजरे ये दिन तेरे बिन,
पल-पल की तड़प तुम्हें बताना चाहता हूं!

हमेशा ख्वाबों में पाया हैं तुम्हें,
हर सांसों में बसाया हैं तुम्हें!
तुझे क्या पता जुदाई का ग़म,
तूने तो सोते हुए भी सताया हैं मुझे!

इक अरदास तो कर लूं! उस रब से तुम्हें पाने की,
तसल्ली तो कर लूं! क्यों सजा दी उसनेे मुझे,
तुम्हें चाहने की!
हमने तो हर सवाल हल किए हैं मुस्कुराते हुए जिन्दगी के,
फिर भी तुम्हें आदत हैं हमें आजमाने की!

हर कोई खेल गया मेरे इस नादां दिल से,
इक तूं भी चली गई तो क्या फर्क पड़ता हैं!
लोग तो लड़ते हैं औरों से हमेशा,
हम तो हर पल तन्हाइयों से लड़ते हैं!

तूं थी तो भूला हुआ था हर ग़म को,
तेरे बगैर तो खुशी भी याद नहीं आती!
रहता ना था खामोश इक पल भी,
तेरे बगैर तो लबों पे बात नहीं आती!

ऐ जिन्दगी! वो तो चलीं गईं,
अब तूं भी चला जा मुझे छोड़कर!
क्या करेगा अब तूं? मुझे तड़पाने के अलावा,
उसके बगैर रहकर...

आखिरी सांस तक तेरा इंतज़ार तो कर लूं,
मौत से पहले तेरा दीदार तो कर लूं!
सारा गुनाह तो, मेरे इस नादां दिल का हैं,
फिर कैसे मैं? तुम्हें बेवफा कह दूं..

'नज़रों की पहेली! हम सुलझा ना सके...'

नज़रों की पहेली! हम सुलझा ना सके,
दिल की बातें भी उन्हें बता ना सके!

मज़बूर थे हम तो वक्त के हाथों,
खुद की बेबसी खुद को समझा ना सके!

ऐ खुदा! सलामत रखना मेरे यार को,
कि यारी अपनी, अपनों से बचा ना सके!

कोई ग़म नहीं कि दुनियां में अकेला हूं, कि
दिल की मोहब्बत लफ्जों से बता ना सके!

दर्द-ए-इश्क ना देना किसी को,
टुटें जो सपने उसे सजा ना सके!

मंज़िल ना सही, राहें ही दिला दें,
चलते रहेंगे, चाहें कुछ पा ना सके!

शिद्दत से दिखा था इक शमां जो खुशी का,
नादां थें हम जो उसे कयामत से बचा ना सके!

मिलीं वो बरसों बाद! जिनकी तलाश थी,
चाहत अपनी उनसे दो पल ज़ता ना सके...

'तेरी ही तस्वीर होगी!'

दिल चिर के देख! तेरी ही तस्वीर होगी,
तेरे ही नाम की लकीर होगी!

तूने ना समझा मेरी मोहब्बत को,
अब ना फिर मोहब्बत की जीत होगी!

अच्छे हैं वो लोग! जो मोहब्बत नहीं करते,
अब तो उनकी ही नसीब होगी!

ये दुनियां हैं ज़ालिम! बचना ऐ दिल,
अब ना तेरे नाम की रसीद होगी!

तूने छोड़ा यूं मेरा साथ, अब
जीने की ना कोई तरकीब होगी!

अब अकेले कैसे रहें, ऐ'कांत'
उनके बगैर तो जन्नत भी अजीब होगी!

Tuesday, January 1, 2019

जीने वाले! हर खुशी जीत लेते हैं...



मंज़िल को खुली आंखों से देखो,
बंद आंखों से तो सिर्फ ख्वाब दिखते हैं!
जलना ही हैं तो ज्वाला की तरह जलो,
अंगीठी में तो सिर्फ हाथ सेकते हैं!



अपनी उम्मीदों को कभी चिराग़ मत बनाना,
वो तो सिर्फ घरों में जलते हैं!
बनाना ही हैं तो उसे सूरज बनाना,
जो पूरी दुनियां में चमकते हैं!


हार के डर से कदम पीछे ना हटाना,
हौसलों से तो चूज़े भी उड़ान भरते हैं!
माना कि, जुगनूओं से नहीं होता रौशन जहां,
पर कोशिश तो वो भी करते हैं...

जिन्दगी हमारी कमजोर नहीं होती,
हम तो कमजोर उसे यूं ही कह देते हैं!
जिन्दगी को जी कर तो देखो दोस्तों,
जीने वाले हर खुशी जीत लेते हैं!

हर पल मौसम बसंत का नहीं होता,
कुछ पल पतझड़ के भी होते हैं!
गिरे पत्तों का क्या ग़म करना,
पुराने गिरे तो, नये भी तो निकलते हैं...



जिन्दगी का सफ़र!

ना जाने कहां से आया हूं, 
ना जाने मुझे कहां जाना हैं!
मैं हूं अंजान मुसाफिर,
ये सफ़र भी अंजाना हैं!



हर रात होती काली यहां,
ना चांद का कोई ठिकाना हैं!
बच के चल ऐ 'कांत',
ये बुराई का ज़माना हैं!



अपने नहीं मिलते यहां,
ये तो अनजानों का घराना हैं! 
अपने छोड़ जाते हैं साथ,
गैरों ने हाथ थामा हैं!



हैं कांटों भरी ये ज़िन्दगी,
नंगें पांव चलते जाना हैं!
चाहे हो कितने भी ग़म,
हमें तो हर पल मुस्कुराना हैं!



आंखों में हैं जो ख्वाब,
उसे पूरा कर हमें सजाना हैं!
और तो कुछ नहीं, बस!
यही जीने का बहाना हैं...