टुटें मेरे इस दिल का, ऐ ज़ालिम तूं दाम ना लगा!
तूं इश्क हैं मेरा! बेवजह ये इल्ज़ाम ना लगा...
तारीफें तो तेरी खुदा तक करते हैं, ऐ गुस्ताख़ इश्क!
वफ़ा को तेरी बदलने में सुबह से शाम ना लगा...
अब ना कोई राहें हैं मेरी, ना पता हैं कोई मंज़िल का!
ये तो नशा हैं तेरी मदमस्त निगाहों का, ना कोई जाम लगा...
वो इश्क हैं मेरा! ना कर सकेगा जुदा
ऐ कायनात! चाहे तूं जोर अपनी तमाम लगा...
हम तो परिंदे हैं, आसमां-ए-इश्क के!
हमें जंज़ीर-ए-मज़हबों से तूं लगाम ना लगा...
पाक सा पवित्र हैं, ये इश्क खुदा का!
नापाक-नियतों से तूं अपनी, जिस्मों का नीलाम ना लगा...
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