Friday, January 25, 2019

मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

इक लहर खुशी की, उत्साह उमंग का,
रग-रग में बहता स्वाभिमान का तरंग हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

मैं ताकत हूं जन-जन का, मैं साहस हूं वतन का,
तानाशाहों, राजनेताओं, के लिए मैं आतंक हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

जो ना झुका हैं कहीं, ना झुकेगा कभी,
उड़ता परिंदा मैं नभ में, मैं मगन हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

जो मैं कहूं, वो कर डालूं,
रोक ना सका हैं कोई, जो फैसला मैं कर डालूं!
नहीं कोई मेरे जैसा, देश का मैं दबंग हूं,
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

जो छूती हैं ऊंचाइयों को, बंधकर प्रेम के मांझे से,
जो लड़ता हैं हर-पल, भ्रष्टाचारों के प्रहारों से!
नभ में उड़ता वो पतंग हूं,
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

राजा के यलगार के आगे, प्रजा का मैं दहाड़ हूं,
खड़ा हैं अचल, होकर निर्भय, वो हिमालय का पहाड़ हूं!
हर बार जीतेंगी प्रजा ही मेरी,
वो राजा-प्रजा का द्वंद हूं!
मैं स्वतंत्र हूं, गणतंत्र हूं!

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