Thursday, January 24, 2019

ऐ मेरी भारत की बहनों, मन को ना तुम हताश करों!

अश्कों को अंगार बना के,
दर्दो को श्रृंगार बना के!
लबों पे हर-पल मुस्कान सजा के,
तुम एक नई हुंकार भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

ये जहां नहीं किसी का,
अपनों को अपना तुम ना मानो!
खुद से, खुद में तुम, हो गुम कहीं,
अब खुद से, खुद को, तुम पहचानों!
ना रहेंगे अधूरे, अब ख्वाब तुम्हरे,
तोड़ के सारी जंजीरों को,
तुम एक नई उड़ान भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

झुक जाएं नजरें भी शर्म से, उन मनचलों का,
कांप उठें रुह-तलक भी, उन जालिमों का!
खुदा भी रहें-ना-रहें संग तो क्या?
हौसले की तुम तलवार बनों!
उठें जो गर्व से सर सबका,
तुम देश का ऐसा स्वाभिमान बनों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

मिला के जहां के कदमों से कदम,
तुम भी, दुश्मनों पर पलटवार करों!
हो जो, लक्ष्मी, सरस्वती, गौरी सी तुम,
अब काली, दुर्गा, चण्डी का तुम अवतार बनों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

हैं वजूद तुमसे ही इस जहां का,
जैसी तुम हो वसुंधरा!
इस बात से तुम ना अब इंकार करों!
हैं ये ज़ालिम ज़माना, कुरीतियों का ठिकाना,
अब तुम भी आगाज़ सरे-आम करों!
तोड़ के सारी जंजीरों को,
तुम एक नई उड़ान भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

पलट के पन्नों को, तुम इतिहास दोहराओं,
रानी लक्ष्मी सी तुम ललकारों!
बन बेटी, गीता-बबीता,
बहन कल्पना सी पहचान बनाओं!
बनकर मां मैरी कॉम,
किरण बेदी सी तुम न्याय दिलाओं!
हैं ज़मीर तुम्हारा भी,
स्वाभिमान भी है, भीतर तुम्हारे,
तो फिर लबों को, ऐसे तुम ना मौन करों,
तोड़ के सारी जंजीरों को,
तुम एक नई उड़ान भरों!
ऐ मेरी भारत की बहनों,
मन को ना तुम हताश करों!

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