Monday, February 11, 2019

"चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं!"

चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं!
कुछ बातें हो कहनी, जो हो जरुरी,
वो लबों से नहीं, हम धड़कनों से कहते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

बहुत हुआ अब ये अल्फाजों का खेल,
ना करा पाया कोई इनका मेल!
सांसों से, चलों जज़्बातों को समझते हैं,
बिना कुछ कहे, बेवजह बहकते हैं!
करीब होकर भी हम,
चलों मिलने को तड़पते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

जमकर इक-दूजे पे सावन सा बरसते हैं,
हाल-ए-दिल चुपके-चुपके सब कुछ बयां करते हैं!
कुछ हिम्मत दो तुम, कुछ हम डरते हैं,
थोड़े बिगड़ो तुम, थोड़ा हम संवरते हैं!
इश्क की हदें सारी आज पार करते हैं,
डर नहीं अब ज़ालिम जमाने का,
इज़हार-ए-इश्क सरे-आम करते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

चलों रख दें दिल-ए-किताब खोलकर,
कि इश्क की कहानी अश्कों से लिखते हैं!
नज़रों से इसे कहां पढ़ पाया हैं कोई,
इश्क-ए-अल्फाज अहसासों से पढ़ते हैं!
इश्क-ए-दरियां हैं जनाब आग का,
इससे तो खुदा भी तड़पते हैं!
फिर भी तुम हम पे मरते हो,
हम तुम पे मरते हैं!
चलों कुछ पल खामोश बैठते हैं,
नज़रों से हम नज़र पढ़ते हैं...

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