Thursday, January 17, 2019

'चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!'

बेवजह ही नजरें वो चुराने लगे हैं,
इश्क हमारी वो आजमाने लगे हैं!
कुछ समझ ही ना पाया मैं दोस्तों,
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

ना कोई खता हैं मेरी, ना वो जुदा हैं मुझसे,
जाने किस बात पे वो खफ़ा हैं मुझसे!
पल-पल वो मुझे सताने लगे हैं,
वो ना इश्क हैं मेरा, वो जताने लगे हैं!
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

फ़ुर्सत ही फुर्सत हैं उन्हें मुझसे बात करने की,
फिर भी बहाने हजार वो बनाने लगे हैं!
तोड़ कर नादां दिल ये मेरा गैरों सा,
औरों से भी इश्क वो फरमाने चलें हैं!
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

बेवजह नहीं उनका यूं मुझसे अलग होना,
कुछ तो वजह हैं जो, वो बताना नहीं चाहते!
धीरे-धीरे से मुझसे दूर वो जाने लगे हैं,
हो रही हैं वो किसी और की,ये किसी और से हमें
वो बताने लगे हैं!
शायद चोरी से बेवफ़ाई वो निभाने लगे हैं!

हमें भुलाना उनकी बस की बात नहीं,
फिर भी वो हमें भुलाने लगे हैं!
तोड़ कर वो अपने हजारों ख्वाब,
खुद को देखों वो संवारने लगे हैं!

अब भी अटकी हुई हैं उनकी सांसें,
थमी हुई हैं दिल की धड़कनें हम पर ही,
लबों की झुठी मुस्कां से अब ये, वो छुपाने लगे हैं!
कदमों को चुम रहीं हैं लाख खुशियां उनकी,
फिर भी झुकी पलकों से वो अश्क बहाने लगे...

याद हमको कर!
शायद वो अब पछताने लगे...

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